عرض القصيدة رقم : 16 - لمّا رأيت منازل الجوزاء
| | | لمّا رأيت منازل الجوزاء |
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| 2 | | | وعلمتُ | أنَّ | اللهَ | يحجُبُ | عبدَه |
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| 5 | | | *** | | بالنسخةِ | المشهودةِ | الغرَّاءِ |
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| 6 | | | زلنا | عنِ | الأمثالِ | لا | بلْ | ضربَها |
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| 9 | | | ولهُ | الرطوبةُ | والحرارةُ | إذْ | له |
| *** | | طبعُ | الحياةِ | وسرُّه | في | الماءِ |
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| 10 | | | عصرُ | الشبابِ | لهُ | وليسَ | لكونِه |
| *** | | في | الرتبةِ | العلياءِ | برجُ | هواءِ |
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| 12 | | | حكمُ | المنازلِ | قدْ | تخالفَ | طبعهُ |
| *** | | كيفَ | الشفاءُ | وفيه | عينُ | الداءَ |
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| 13 | | | حارَ | المكاشفُ | في | الدجى | خيالَه |
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| 14 | | | الأمرُ | أعظمُ | أنْ | يحاطَ | بكنههِ |
| *** | | ومعَ | النزاهةِ | جاءَ | بالأنواءِ |
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| 15 | | | حِرنا | وحارَ | العقلُ | في | تحصيلهِ |
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| 16 | | | لولا | ثبوتُ | المنعِ | قلتُ | بجودهِ |
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| 19 | | | القصد | في | علمِ | الأمور | كما | جَرَتْ |
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| 20 | | | إنّ | الطبيعةَ | كالعروسِ | إذ | انجلتْ |
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| 23 | | | وهم | الشقائقُ | يُنسَبون | إليهما |
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| 24 | | | من | دانَ | بالإحصاءِ | دانَ | بكلِّ | ما |
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| 26 | | | واسلك | بنا | النهجَ | القويمَ | ملبياً |
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