| | | إذا ما ذكرت الله في غسق الدجى |
| 1 | | | إذا | ما | ذكرتَ | اللهَ | في | غسق | الدجى |
| *** | | دُجى | الجسمِ | لو | عند | الصباحِ | إذا | بدا |
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| 2 | | | صباحُ | الذي | يحيى | به | الجسم | عندما |
| *** | | هوَ | الروحُ | لكنْ | بالمزاجِ | تبلدا |
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| 3 | | | فلا | يأخذُ | الأشياءَ | منْ | غيرِ | نفسهِ |
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| 4 | | | *** | | وأصبحَ | عبداً | بعدَ | أنْ | كان | سيدا |
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| 5 | | | لقد | خلته | رُوحاً | كريماً | منزهاً |
| *** | | فأصبح | ريحاً | عنصرياً | مُجسَّدا |
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| 6 | | | وكانَ | جليساً | للخضارمةِ | العلى |
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| 7 | | | *** | | فلما | ارتدى | الجسمَ | الترابيَّ | ألحدا |
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| 8 | | | وأجرى | له | نهراً | من | الخمر | سائغاً |
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| 9 | | | *** | | فلمَّا | رأى | الأرضَ | الأريضة | أخلدا |
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| 10 | | | وكان | لما | يلقاه | بالذاتِ | قائلاً |
| *** | | وكانَ | إذا | ما | جاءَه | الوحيُ | أسجدا |
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| 11 | | | وقدْ | كانَ | موصوفاً | فأصبحَ | واصفاً |
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| 12 | | | كما | كانَ | فيما | نالَ | منهُ | موحداً |
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| 13 | | | وفي | عالمِ | البعدِ | الذي | قدْ | رأيتهُ |
| *** | | رأيتُ | لهُ | في | حضرةِ | القربِ | مقعدا |
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| 15 | | | وأصعقهمْ | وحيٌ | من | اللهِ | جاءهمْ |
| *** | | فلمَّا | أفاقوا | قلتُ: | ماذا | فقال: | دا |
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| 16 | | | *** | | ولن | يصلحَ | العطارُ | ما | الدهر | أفسدا |
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| 18 | | | *** | | وأبلستُ | منْ | ناداكَ | فيها | وفندا |
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| 22 | | | *** | | بما | قالهُ | إذْ | قالَ | قولاً | مسددا |
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