| | | أسماء أسمائه الحسنى التي تبدي |
| 1 | | | أسماءُ | أسمائهِ | الحسنى | التي | تبدي |
| *** | | هيَ | الكثيرةُ | بالأوتارِ | والعددِ |
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| 2 | | | وما | بأسمائه | الحسنى | التي | خفيتْ |
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| 3 | | | وإنَّ | أسماءَه | الحسنى | التي | بقيتْ |
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| 4 | | | *** | | فكيفَ | أجعلها | في | الدفعِ | معتمدي |
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| 5 | | | والناسُ | في | غفلةٍ | عمَّا | ذكرتُ | لهمْ |
| *** | | فيها | وعنْ | سبلِ | التحقيقِ | في | حيدِ |
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| 7 | | | فليتَ | شعري | إذا | مرَّ | الزمانُ | بها |
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| 8 | | | *** | | والدهر | يعرف | بالأدوار | والمدَد |
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| 9 | | | وما | تسمى | بهِ | الحقُّ | العليمُ | سدىً |
| *** | | إلا | من | أجلِ | الذي | يعطيهِ | من | مددِ |
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| 11 | | | *** | | هلْ | في | الزمانِ | زمانٌ | فاعتبرْ | تجدِ |
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| 12 | | | *** | | من | العلومِ | التي | أعطتكَ | في | الرّفَد |
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| 13 | | | بذاتها | وهيَ | لمْ | تشعرْ | بما | وهبتْ |
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| 15 | | | هذا | من | الجهةِ | المقصودِ | جانبها |
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| 16 | | | إنَّ | الورودَ | الذي | في | الكونِ | صورتُهُ |
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| 17 | | | هذا | هوَ | الأدبُ | المشروعُ | ليسَ | لهُ |
| *** | | إلاّ | أداة | امتناعِ | الشيءِ | لم | يرد |
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| 18 | | | قدْ | قلتُ | فيهِ | مقالاً | لستُ | أنكرهُ |
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| 19 | | | إنَّ | العلومَ | التي | التحقيقُ | جاء | بها |
| *** | | هي | العلومُ | التي | تهدي | إلى | الرشدِ |
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| 20 | | | رشد | المعارفِ | لا | رشد | السعادةِ | و |
| *** | | الإيمانُ | يسعدُ | أهلَ | الصورِ | والجسدِ |
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| 21 | | | فاحمدْ | إلهكَ | لا | تحمدْ | سواهُ | فما |
| *** | | يعطي | السعادةَ | إلا | حمدُهُ | وقدِ |
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| 22 | | | لا | تنكروا | الطبعَ | إنَّ | الطبعَ | يغلبني |
| *** | | والحقُّ | يغلبه | إنْ | كانَ | ذا | فَنَد |
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| 23 | | | دين | العجائزِ | مأوانا | ومذهبُنا |
| *** | | وهوَ | الظهورُ | بهِ | في | كلِّ | معتقدِ |
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| 24 | | | *** | | على | التفكُّر | في | كشفٍ | وفي | سَنَدِ |
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| 25 | | | *** | | سُفلى | معَ | القولِ | بالتوحيدِ | للأحد |
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| 26 | | | *** | | ميلاً | شديداً | إلى | ما | ليسَ | مستندي |
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| 27 | | | إنّ | الركونَ | إلى | الأدنى | منَ | السببِ |
| *** | | الأعلى | تجد | طعمَه | أحلى | من | الشَّهد |
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| 28 | | | *** | | ولا | جهولاً | ولا | منْ | قالَ | بالرصدِ |
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| 29 | | | بل | حكمُهُ | لم | يزلْ | في | كلِّ | طائفةٍ |
| *** | | من | كلِّ | صاحبِ | برهانٍ | ومعتَقَد |
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| 30 | | | *** | | رأيتُ | شخصاً | سعيداً | آخرَ | الأبدِ |
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| 31 | | | هوَ | الإلهُ | الذي | عمَّتْ | عوارِفهُ |
| *** | | لما | سرى | الجودُ | في | الأدنى | وفي | البعد |
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| 32 | | | ألا | ترى | الجودَ | بالإيجاد | عمَّ | فلم |
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