| | | ما في الوجود الذي تدريه من أحد |
| 1 | | | ما | في | الوجودِ | الذي | تدريهِ | من | أحدٍ |
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| 3 | | | لهُ | الكمالُ | كما | في | الكونِ | صورتُهُ |
| *** | | ولي | عليهِ | منَ | التشريعِ | برهانُ |
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| 5 | | | فاعكفْ | عليهِ | ولا | تفرحْ | بصورتِهِ |
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| 6 | | | يبدو | إذا | قسمَ | التكليفُ | بينهما |
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| 7 | | | فمنْ | كمالِ | وجودي | أنْ | يكونَ | لنا |
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| 8 | | | *** | | تقلْ | بأنَّ | وجودَ | الجحدِ | نقصانُ |
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| 9 | | | لمْ | ينقص | النقصُ | منْ | عينِ | الوجودِ | لما |
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| 10 | | | الأمرُ | أعظمُ | أنْ | يحظى | بهِ | أحدٌ |
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| 12 | | | فعمَّ | ظاهره | الأعلى | وباطنه | الأ |
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| 13 | | | فثلثُ | الأمرِ | والتربيعُ | نشأتهُ |
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| 14 | | | فقالَ | إنْ | لمْ | يكنْ | كونٌ | بهِ | نزهٌ |
| *** | | فأثبتْ | على | النفي | ما | في | الكونِ | أعيانُ |
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| 15 | | | *** | | والقولُ | بالكثرِ | في | الأكوانِ | بهتانُ |
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| 16 | | | فانظر | إلى | حكمةٍ | عرّا | أتيتَ | بها |
| *** | | بيضاء | مثلي | فقال: | الناسُ | عميان |
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| 17 | | | يا | ليتَ | شعري | فما | في | الكونِ | من | بصرٍ |
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| 18 | | | إنْ | تتقِ | الله | كان | النور | يعضدكم |
| *** | | يتلوهُ | فيكمْ | هديٌ | منهُ | وفرقانُ |
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| 19 | | | ما | حكمةُ | اللهِ | في | الأشياءِ | باديةٌ |
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| 20 | | | فليس | كونك | إنساناً | بصورتِك | الد |
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