الصفحة 305 - ديوان الشيخ محي الدين ابن العربي
	التنسيق موافق لطبعة دار الكتب العلية - شرح أحمد حسن بسج.
	
	
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	|  | الصفحة 305 - ديوان الشيخ محي الدين ابن العربي 
 وقال أيضا:| إذا طمعت نفسي بإدراك ذاتها | *** | فتلك التي تدعى بجاهلة بلها |  | تخص إذا خصت نفوس شريفة | *** | منزهة الأوصاف بالصورة الشوهى | 
 | عجبت من ستور | *** | ترخى وتسدل1 |  | فس سدلها نعيم | *** | يعطيه مفضل |  | إن قلت يا فلان | *** | رخم وقل فل |  | قد جاءنا كتاب | *** | للحقّ فيصل |  | لباسه حروف | *** | فيهن يرفل |  | يقول فيه قولا | *** | عليه عوّلوا |  | إنّ الكلام سهل | *** | والصمت أسهل |  | عليه فليعوّل | *** | فهو المعوّل |  | ففي الكلام ما لا | *** | يدرى ويجهل |  | والصمت لبس فيه | *** | هذا مفصل |  | إنّ الكلام فيه | *** | أعلى وأنزل |  | والصمت ليس فيه | *** | ذا الحكم فاعدلوا |  | فكلّه نجاة | *** | وعنه نسأل |  | كما يقول أيضا | *** | ما فيه فيصل |  | إنّ الكلام منّا | *** | وحي منزل |  | فكلّه عليّ | *** | ما فيه أنزل |  | وكله صحيح | *** | لكن يعلل |  | فمنه ما يردّ | *** | شرعا ويقبل |  | يقضى به جنوب | *** | فينا وشمأل |  | للشرع منه فينا | *** | تاج مكلّل |  | قول عليه نور | *** | ما عنه معدل |  | وللعقول منه | *** | ظلّ مظلل |  | ضرب المثال حقّ | *** | يدريه أمثل |  | إنّ الحكيم يسدي | *** | به ويفضل |  | فما جهلت منه | *** | عن ذاك تسأل | 
 
 1) الستور: تخفى بالهياكل البدنية الإنسانية المرخاة بين عالم الغيب والشهادة. 
  - الديوان الكبير - الصفحة 305 
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